बड़ अधिकार दच्छ जब पावा। अति अभिनामु हृदयँ तब आवा॥ नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (59.4) | Caupāī (59.4)
बड़ अधिकार दच्छ जब पावा। अति अभिनामु हृदयँ तब आवा॥
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥4॥
भावार्थ:-जब दक्ष ने इतना बड़ा अधिकार पाया, तब उनके हृदय में अत्यन्त अभिमान आ गया। जगत में ऐसा कोई नहीं पैदा हुआ, जिसको प्रभुता पाकर मद न हो॥4॥
baḍa adhikāra daccha jaba pāvā. ati abhimānu hṛdayaom taba āvā..
nahiṃ kōu asa janamā jaga māhīṃ. prabhutā pāi jāhi mada nāhīṃ..
When Daksha attained this high position, the pride of his heart knew no bounds. Never was a creature born in this world, whom power did not intoxicate.