बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं। गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं॥ जलधि अगाध मौलि बह फेनू। संतत धरनि धरत सिर रेनू॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं। गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं॥
जलधि अगाध मौलि बह फेनू। संतत धरनि धरत सिर रेनू॥4॥
भावार्थ:
बड़े लोग छोटों पर स्नेह करते ही हैं। पर्वत अपने सिरों पर सदा तृण (घास) को धारण किए रहते हैं। अगाध समुद्र अपने मस्तक पर फेन को धारण करता है और धरती अपने सिर पर सदा धूलि को धारण किए रहती है॥4॥
English :
IAST :
Meaning :