बहुरि राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा॥ हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 55.3 | Caupāī 55.3
बहुरि राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा॥
हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना॥3॥
भावार्थ:-फिर श्री रामचन्द्रजी की माया को सिर नवाया, जिसने प्रेरणा करके सती के मुँह से भी झूठ कहला दिया। सुजान शिवजी ने मन में विचार किया कि हरि की इच्छा रूपी भावी प्रबल है॥3॥
bahuri rāmamāyahi siru nāvā. prēri satihi jēhiṃ jhūomṭha kahāvā..
hari icchā bhāvī balavānā. hṛdayaom bicārata saṃbhu sujānā..
Again, He bowed His head to the delusive power of Sri Rama, that had prompted Sats to tell a lie. What has been preordained by the will of Sri Hari must have its way, the all-wise Sambhu thought within Himself.