ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना। तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना॥ जौं बिनु बोलें जाहु भवानी। रहइ न सीलु सनेहु न कानी॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (61.2) | Caupāī (61.2)
ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना। तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना॥
जौं बिनु बोलें जाहु भवानी। रहइ न सीलु सनेहु न कानी॥2॥
भावार्थ:-एक बार ब्रह्मा की सभा में हम से अप्रसन्न हो गए थे, उसी से वे अब भी हमारा अपमान करते हैं। हे भवानी! जो तुम बिना बुलाए जाओगी तो न शील-स्नेह ही रहेगा और न मान-मर्यादा ही रहेगी॥2॥
brahmasabhāom hama sana dukhu mānā. tēhi tēṃ ajahuom karahiṃ apamānā..
jauṃ binu bōlēṃ jāhu bhavānī. rahai na sīlu sanēhu na kānī..
In the court of Brahma he once took offence at our behaviour; that is why he insults us even now. If you go there uninvited, Bhavani, all decorum, affection and honour will be cast to the winds.