भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥ सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू॥4॥ गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई4-5 | Caupāī 4-5
भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥
सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू॥4॥
गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई॥5॥
भावार्थ:-भले और बुरे अपनी-अपनी करनी के अनुसार सुंदर यश और अपयश की सम्पत्ति पाते हैं। अमृत, चन्द्रमा, गंगाजी और साधु एवं विष, अग्नि, कलियुग के पापों की नदी अर्थात् कर्मनाशा और हिंसा करने वाला व्याध, इनके गुण-अवगुण सब कोई जानते हैं, किन्तु जिसे जो भाता है, उसे वही अच्छा लगता है॥4-5॥
bhala anabhala nija nija karatūtī. lahata sujasa apalōka bibhūtī..
sudhā sudhākara surasari sādhū. garala anala kalimala sari byādhū..
guna avaguna jānata saba kōī. jō jēhi bhāva nīka tēhi sōī..
The good and the wicked gather a rich harvest of good reputation and infamy by their respective doings. Although the merits of nectar, the moon-the seat of nectar- the Ganga-the river of the celestials-and a pious soul, on the one hand, and the demerits of venom, fire, the unholy river Karmanasa-which is said to be full of the impurities of the Kali age-and the hunter, on the other, are known to all, only that which is to a man’s taste appears good to him.(4-5)