भाँति अनेक संभु समुझावा। भावी बस न ग्यानु उर आवा॥ कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ। नहिं भलि बात हमारे भाएँ॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (61.4) | Caupāī (61.4)
भाँति अनेक संभु समुझावा। भावी बस न ग्यानु उर आवा॥
कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ। नहिं भलि बात हमारे भाएँ॥4॥
भावार्थ:-शिवजी ने बहुत प्रकार से समझाया, पर होनहारवश सती के हृदय में बोध नहीं हुआ। फिर शिवजी ने कहा कि यदि बिना बुलाए जाओगी, तो हमारी समझ में अच्छी बात न होगी॥4॥
bhāomti anēka saṃbhu samujhāvā. bhāvī basa na gyānu ura āvā..
kaha prabhu jāhu jō binahiṃ bōlāēom. nahiṃ bhali bāta hamārē bhāēom..
Sambhu expostulated with Sati in so many ways; but as fate had willed it wisdom would not dawn on Her. The Lord repeated once more that if She went to Her father’s place uninvited. He anticipated no good results from it.