मंजुल मनिमय बंदनिवारे। मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे॥ प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
मंजुल मनिमय बंदनिवारे। मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे॥
प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि॥2॥
भावार्थ:
सुंदर मणियों से बने बंदनवार ऐसे मालूम होते हैं, मानो इन्द्रधनुष सजाए हों। अटारियों पर सुंदर और चपल स्त्रियाँ प्रकट होती और छिप जाती हैं (आती-जाती हैं), वे ऐसी जान पड़ती हैं, मानो बिजलियाँ चमक रही हों॥2॥
English :
IAST :
Meaning :