मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥ नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 10(ख).1 |Caupāī 10( Kha).1
मनि मानिक मुकुता छबि जैसी।
अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥
नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई॥1॥
भावार्थ:-मणि, माणिक और मोती की जैसी सुंदर छबि है, वह साँप, पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी शोभा नहीं पाती। राजा के मुकुट और नवयुवती स्त्री के शरीर को पाकर ही ये सब अधिक शोभा को प्राप्त होते हैं॥1॥
mani mānika mukutā chabi jaisī. ahi giri gaja sira sōha na taisī..
nṛpa kirīṭa tarunī tanu pāī. lahahiṃ sakala sōbhā adhikāī..
The beauty of a gem, a ruby and a pearl does not catch the eye as it should so long as they are borne on the head of a serpent, the top of a mountain and the crown of an elephant respectively. The charm of them all is enhanced when they adorn the diadem of a king or the person of a young lady.