मरकत कनक बरन बर जोरी। देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी॥ पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
मरकत कनक बरन बर जोरी। देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी॥
पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे॥4॥
भावार्थ:
मरकतमणि और सुवर्ण के रंग की सुंदर जोड़ियों को देखकर देवताओं को कम प्रीति नहीं हुई (अर्थात् बहुत ही प्रीति हुई)। फिर रामचन्द्रजी को देखकर वे हृदय में (अत्यन्त) हर्षित हुए और राजा की सराहना करके उन्होंने फूल बरसाए॥4॥
English :
IAST :
Meaning :