मैं संकर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना॥ जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 53.1 | Caupāī 53.1
मैं संकर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना॥
जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा॥1॥
भावार्थ:-कि मैंने शंकरजी का कहना न माना और अपने अज्ञान का श्री रामचन्द्रजी पर आरोप किया। अब जाकर मैं शिवजी को क्या उत्तर दूँगी? (यों सोचते-सोचते) सतीजी के हृदय में अत्यन्त भयानक जलन पैदा हो गई॥1॥
maiṃ saṃkara kara kahā na mānā. nija agyānu rāma para ānā..
jāi utaru aba dēhauom kāhā. ura upajā ati dāruna dāhā..
I heeded not the word of Sarkara and imposed My own ignorance on Rama. What reply shall I give to my lord now?” The agony of Her heart was most terrible.