रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु। अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु॥170॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
दोहा :
रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु।
अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु॥170॥
भावार्थ:
तेजस्वी शत्रु अकेला भी हो तो भी उसे छोटा नहीं समझना चाहिए। जिसका सिर मात्र बचा था, वह राहु आज तक सूर्य-चन्द्रमा को दुःख देता है॥170॥
English :
IAST :
Meaning :