श्री रामनाम जप
श्री रामनाम जप
राग भैरव
६५
राम राम रमु,राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।
रामनाम-नवनेह-मेहको,मन! हठि होहि पपीहा ॥ १ ॥
सब साधन-फल कूप-सरित-सर,सागर-सलिल-निरासा।
रामनाम-रति-स्वाति-सुधा-सुभ-सीकर प्रेमपियासा ॥ २ ॥
गरजि,तरजि,पाषान बरषि पवि,प्रीति परखि जिय जानै।
अधिक अधिक अनुराग उमँग उर, पर परमिति पहिचानै ॥ ३ ॥
रामनाम-गति, रामनाम-मति, राम-नाम-अनुरागी।
ल्है गये,है,जे होहिंगे, तेइ त्रिभुवन गनियत बड़भागी ॥ ४ ॥
एक अंग मग अगमु गवन कर, बिलमु न छिन छिन छाहैं।
तुलसी हित अपनो अपनी दिसि,निरुपधि नेम निबाहैं ॥ ५ ॥
६६
राम जपु,राम जपु, राम जपु बावरे।
घोर भव-नीर-निधि नाम निज नाव रे ॥ १ ॥
एक ही साधन सब रिद्धि-सिद्धि साधि रे।
ग्रसे कलि-रोग जोग-संजम-समाधि रे ॥ २ ॥
भलो जो है,पोच जो है,दाहिनो जो,बाम रे।
राम-नाम ही सों अंत सब ही को काम रे ॥ ३ ॥
जग नभ-बाटिका रही है फलि फूलि रे।
धुवाँ कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे ॥ ४ ॥
राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे।
तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौर रे ॥ ५ ॥
६७
राम राम जपु जिय सदा सानुराग रे।
कलि न बिराग,जोग,जाग,तप,त्याग रे ॥ १ ॥
राम सुमिरत सब बिधि ही को राज रे।
रामको बिसारिबो निषेध-सिरताज रे ॥ २ ॥
राम-नाम महामनि,फनि जगजाल रे।
मनि लिये,फनि जियै,ब्याकुल बिहाल रे ॥ ३ ॥
राम-नाम कामतरु देत फल चारि रे।
कहत पुरान,बेद,पंडित,पुरारि रे ॥ ४ ॥
राम-नाम प्रेम-परमारथको सार रे।
राम-नाम तुलसीको जीवन-अधार रे ॥ ५ ॥
६८
राम राम राम जीह जौलौं तू न जपिहै।
तौलौं,तू कहूँ जाय, तिहूँ ताप तपिहै ॥ १ ॥
सुरसरि-तीर बिनु नीर दुख पाइहै।
सुरतरु तरे तोहि दारिद सताइहै ॥ २ ॥
जागत,बागत सपने न सुख सोइहै।
जनम जनम,जुग जुग जग रोइहै ॥ ३ ॥
छूटिबेके जतन बिसेष बाँधो जायगो।
ह्वेहै बिष भोजन जो सुधा-सानि खायगो ॥ ४ ॥
तुलसी तिलोक,तिहूँ काल तोसे दीनको।
रामनाम ही की गति जैसे जल मीनको ॥ ५ ॥
६९
सुमिरु सनेहसों तू नाम रामरायको।
संबल निसंबलको,सखा असहायको ॥ १ ॥
भाग है अभागेहूको,गुन गुनहीनको।
गाहक गरीबको,दयालु दानि दीनको ॥ २ ॥
कुल अकुलीनको,सुन्यो है बेद साखि है।
पाँगुरेको हाथ-पाँय,आँधरेको आँखि है ॥ ३ ॥
माय-बाप भूखेको, अधार निराधारको।
सेतु भव-सागरको, हेतु सुखसारको ॥ ४ ॥
पतितपावन राम-नाम सो न दूसरो।
सुमिरि सुभूमि भयो तुलसी सो ऊसरो ॥ ५ ॥
७०
भलो भली भाँति है जो मेरे कहे लागिहै।
मन राम-नामसों सुभाय अनुरागिहै ॥ १ ॥
राम-नामको प्रभाउ जानि जूड़ी आगिहै।
सहित सहाय कलिकाल भीरु भागिहै ॥ २ ॥
राम-नामसों बिराग,जोग,जप जागिहै।
बाम बिधि भाल हू न करम दाग दागिहै ॥ ३ ॥
राम-नाम मोदक सनेह सुधा पागिहै।
पाइ परितोष तू न द्वार द्वार बागिहै ॥ ४ ॥
राम-नाम काम-तरु जोइ जोइ माँगिहै।
तुलसिदास स्वारथ परमारथ न खाँगिहै ॥ ५ ॥
सीयावर रामचंद्र शंकर जी उमा