श्रीराम स्तुति
श्रीराम-स्तुति
४३
जयति
सच्चिदव्यापकानन्द परब्रह्म-पद विग्रह-व्यक्त लीलावतारी।
विकल ब्रह्मादि,सुर,सिद्ध,सङ्कोचवश,विमल गुण-गेह नर-देह-धारी। १।
जयति
कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता,कुशल कैवल्य-फल चारु चारी।
वेद-बोधित करम-धरम-धरनीधेनु,विप्र-सेवक साधु-मोदकारी ॥ २ ॥
जयति ऋषि-मखपाल,शमन-सज्जन-साल,शापवश मुनिवधू-पापहारी।
भञ्जि भवचाप,दलि दाप भूपावली,सहित भृगुनाथ नतमाथ भारी ॥ ३ ॥
जयति धारमिक-धुर,धीर रघुवीर गुर-मातु-पितु-बन्धु-वचनानुसारी।
चित्रकूटाद्रि विन्ध्याद्रि दण्डकविपिन,धन्यकृत पुन्यकानन-विहारी ॥ ४ ॥
जयति पाकारिसुत-काक-करतूति-फलदानि खनि गर्त गोपित विराधा।
दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी जनु विडम्बित करी विश्वबाधा ॥ ५ ॥
जयति खर-त्रिशिर-दूषण चतुर्दश-सहस-सुभट-मारीच-संहारकर्ता।
गृध्र-शबरी-भक्ति-विवश करुणासिन्धु,चरित निरुपाधि,त्रिविधार्तिहर्ता ॥ ६ ॥
जयति मद-अन्ध कुकबन्ध बधि,बालि बलशालि बधि,करन सुग्रीव राजा।
सुभट मर्कट-भालु-कटक-सङ्घट सजत,नमत पद रावणानुज निवाजा ॥ ७ ॥
जयति पाथोधि-कृत-सेतु कौतुक हेतु,काल-मन अगम लई ललकि लङ्का।
सकुल,सानुज,सदल दलित दशकण्ठ रण,लोक-लोकप किये रहित-शङ्का ॥ ८ ॥
जयति सौमित्रि-सीता-सचिव-सहित चले पुष्पकारुढ निज राजधानी।
दासतुलसी मुदित अवधवासी सकल,राम भे भूप वैदेहि रानी ॥ ९ ॥
४४
जयति
राज-राजेन्द्र राजीवलोचन,राम
नाम कलि-कामतरु,साम-शाली।
अनय-अम्भोधि-कुम्भज,निशाचर-निकर-
तिमिर-घनघोर-खरकिरणमाली ॥ १ ॥
जयति मुनि-देव-नरदेव दसरत्थके ,
देव-मुनि-वन्द्य किय अवध-वासी।
लोक नायक-कोक-शोक-सङ्कट-शमन,
भानुकुल-कमल कानन-विकासी ॥ २ ॥
जयति श्रृङ्गार-सर तामरस-दामदुति-
देह,गुणगेह,विश्वोपकारी ॥ ।३ ॥
सकल सौभाग्य-सौन्दर्य-सुषमारुप,
मनोभव कोटि गर्वापहारी ॥ ३ ॥
(जयति) सुभग सारङ्ग सुनिखङ्ग सायक शक्ति,
चारु चर्मासि वर वर्मधारी।
धर्मधुरधीर,रघुवीर,भुजबल अतुल,।
हेलया दलित भूभार भारी ॥ ४ ॥
जयति कलधौत मणि-मुकुट,कुण्डल,तिलक-
झलक भलि भाल,विधु-वदन-शोभा।
दिव्य भूषन,बसन पीत,उपवीत,
किय ध्यान कल्यान-भाजन न को भा ॥ ५ ॥
(जयति)भरत-सौमित्रि-शत्रुघ्न-सेवित,सुमुख,
सचिव-सेवक-सुखद, सर्वदाता ॥
अधम,आरत,दीन,पतित,पातक-पीन
सकृत नतमात्र कहि ‘पाहि’ पाता ॥ ६ ॥
जयति जय भुवन दसचारि जस जगमगत,
पुन्यमय,धन्य जय रामराजा।
चरित-सुरसरित कवि-मुख्य गिरि निःसरित,
पिबत,मज्जत मुदित सँत-समाजा ॥ ७ ॥
जयति वर्णाश्रमाचारपर नारि-नर,
सत्य-शम-दम-दया-दानशीला।
विगत दुख-दोष,सन्तोस सुख सर्वदा,
सुनत,गावत राम राजलीला ॥ ८ ॥
जयति वैराग्य-विज्ञान-वारांनिधे
नमत नर्मद,पाप-ताप-हर्ता।
दास तुलसी चरण शरण संशय-हरण,
देहि अवलम्ब वैदेहि-भर्ता ॥ ९ ॥
राग गौरी
४५
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।
नवकञ्ज-लोचन,कञ्ज-मुख,कर-कञ्ज,पद कञ्जारुणं ॥ १ ॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि,नवनिल नीरद सुन्दरं।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥ २ ॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्य-वंश निकन्दनं।
रघुनन्द आनँदकन्द कोशलचन्द दशरथ-नन्दनं ॥ ३ ॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं।
आजानुभुज शर-चाप-धर,सङ्ग्राम-जित-खरदूषणं ॥ ४ ॥
इति वदति तुलसीदास शङ्कर-शेष-मुनि-मन-रञ्जनं।
मम ह्रदय कञ्ज निवास करु कामादि खल-दल-गञ्जनं ॥ ५ ॥