सखा रामु सिय लखनु जहँ तहाँ मोहि पहुँचाउ। नाहिं त चाहत चलन अब प्रान कहउँ सतिभाउ॥149॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
दोहा :
सखा रामु सिय लखनु जहँ तहाँ मोहि पहुँचाउ।
नाहिं त चाहत चलन अब प्रान कहउँ सतिभाउ॥149॥
भावार्थ:
हे सखा! श्री राम, जानकी और लक्ष्मण जहाँ हैं, मुझे भी वहीं पहुँचा दो। नहीं तो मैं सत्य भाव से कहता हूँ कि मेरे प्राण अब चलना ही चाहते हैं॥149॥
English :
IAST :
Meaning :