सुनु मुनि मोह होइ मन ताकें। ग्यान बिराग हृदय नहिं जाकें॥ ब्रह्मचरज ब्रत रत मतिधीरा। तुम्हहि कि करइ मनोभव पीरा॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
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प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
सुनु मुनि मोह होइ मन ताकें। ग्यान बिराग हृदय नहिं जाकें॥
ब्रह्मचरज ब्रत रत मतिधीरा। तुम्हहि कि करइ मनोभव पीरा॥1॥
भावार्थ:
हे मुनि! सुनिए, मोह तो उसके मन में होता है, जिसके हृदय में ज्ञान-वैराग्य नहीं है। आप तो ब्रह्मचर्यव्रत में तत्पर और बड़े धीर बुद्धि हैं। भला, कहीं आपको भी कामदेव सता सकता है?॥1॥
English :
IAST :
Meaning :