सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु। रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु॥140॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
दोहा :
सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु।
रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु॥140॥
भावार्थ:
जिन श्री रामचन्द्रजी का स्मरण करने से ही भक्तजन तमाम भोग-विलास को तिनके के समान त्याग देते हैं, उन श्री रामचन्द्रजी की प्रिय पत्नी और जगत की माता सीताजी के लिए यह (भोग-विलास का त्याग) कुछ भी आश्चर्य नहीं है॥140॥
English :
IAST :
Meaning :