सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं। दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं॥ खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई2 |Caupāī 2
सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं। दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं॥
खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥2॥
भावार्थ:-भगवान के भक्त जैसे उस चूक को सुधार लेते हैं और दुःख-दोषों को मिटाकर निर्मल यश देते हैं, वैसे ही दुष्ट भी कभी-कभी उत्तम संग पाकर भलाई करते हैं, परन्तु उनका कभी भंग न होने वाला मलिन स्वभाव नहीं मिटता॥2॥
sō sudhāri harijana jimi lēhīṃ. dali dukha dōṣa bimala jasu dēhīṃ..
khalau karahiṃ bhala pāi susaṃgū. miṭai na malina subhāu abhaṃgū..
But just as servants of Sri Hari rectify that error and, eradicating sorrow and weakness, bring untarnished glory to them, even so the wicked occasionally perform a noble deed due to their good association, although their evil nature, which is unchangeable, cannot be obliterated.