हनुमत स्तुति
हनुमत-स्तुति
राग धनाश्री
२५
जयत्यञ्जनी-गर्भ-अम्भोधि-सम्भूत विधु विबुध-कुल-कैरवानन्दकारी।
केसरी-चारु-लोचन चकोरक-सुखद, लोकगन-शोक-सन्तापहारी ॥ १ ॥
जयति जय बालकपि केलि-कौतुक उदित-चण्डकर-मण्डल-ग्रासकर्त्ता।
राहु-रवि-शक्र-पवि-गर्व-खर्वीकरण शरण-भयहरण जय भुवन-भर्ता ॥ २ ॥
जयति रणधीर, रघुवीरहित,देवमणि,रुद्र-अवतार, संसार-पाता।
विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपुष,विमलगुण,बुद्धि-वारिधि-विधाता ॥ ३ ॥
जयति सुग्रीव-ऋक्षादि-रक्षण-निपुण,बालि-बलशालि-बध-मुख्यहेतू।
जलधि-लङ्घन सिंह सिंहिङ्का-मद-मथन,रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू ॥ ४ ॥
जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन विपिन-दलन घननादवश विगतशङ्का।
लूमलीलाऽनल-ज्वालमालाकुलित होलिकाकरण लङ्केश-लङ्का ॥ ५ ॥
जयति सौमित्र रघुनन्दनानन्दकर,ऋक्ष-कपि-कटक-सङ्घट-विधायी।
बद्ध-वारिधि-सेतु अमर-मङ्गल-हेतु,भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी ॥ ६ ॥
जयति जय वज्रतनु दशन नख मुख विकट,चण्ड-भुजदण्ड तरु-शैल-पानी।
समर-तैलिक-यन्त्र तिल-तमीचर-निकर,पेरि डारे सुभट घालि घानी ॥ ७ ॥
जयति दशकण्ठ-घटकर्ण-वारिद-नाद-कदन-कारन,कालनेमि-हन्ता।
अघटघटना-सुघट सुघट-विघटन विकट,भूमि-पाताल-जल-गगन-गन्ता ॥ ८ ॥
जयति विश्व-विख्यात बानैत-विरुदावली,विदुष बरनत वेद विमल बानी।
दास तुलसी त्रास शमन सीतारमण सङ्ग शोभित राम-राजधानी ॥ ९ ॥
२६
जयति मर्कटाधीश ,मृगराज-विक्रम,महादेव,मुद-मङ्गलालय,कपाली।
मोह-मद-क्रोध-कामादि-खल-सङ्कुला,घोर संसार-निशि किरणमाली ॥ १ ॥
जयति लसदञ्जनाऽदितिज,कपि-केसरी-कश्यप-प्रभव,जगदार्त्तिहर्त्ता।
लोक-लोकप-कोक-कोकनद-शोकहर,हंस हनुमान कल्यानकर्ता ॥ २ ॥
जयति सुविशाल-विकराल-विग्रह,वज्रसार सर्वाङ्ग भुजदण्ड भारी।
कुलिशनख, दशनवर लसत,बालधि बृहद, वैरि-शस्त्रास्त्रधर कुधरधारी ॥ ३ ॥
जयति जानकी-शोच-सन्ताप-मोचन,रामलक्ष्मणानन्द-वारिज-विकासी।
कीस-कौतुक-केलि-लूम-लङ्का-दहन,दलन कानन तरुण तेजरासी ॥ ४ ॥
जयति पाथोधि-पाषाण-जलयानकर,यातुधान-प्रचुर-हर्ष-हाता।
दुष्टरावण-कुम्भकर्ण-पाकारिजित-मर्मभित्,कर्म-परिपाक-दाता ॥ ५ ॥
जयति भुवननैकभूषण,विभीषणवरद,विहित कृत राम-सङ्ग्राम साका।
जयति पर-यत्रम्मन्त्राभिचार-ग्रसन,कारमन-कूट-कृत्यादि-हन्ता।
शाकिनी-डाकिनी-पूतना-प्रेत-वेताल-भूत-प्रमथ-यूथ-यन्ता ॥ ७ ॥
पुष्पकारूढ़ सौमित्रि-सीता-सहित,भानु-कुलभानु-कीरति-पताका ॥
जयति वेदान्तविद विविध-विद्या-विशद,वेद-वेदाङ्गविद ब्रह्मवादी।
ज्ञान- विज्ञान-वैराग्य-भाजन विभो,विमल गुण गनति शुकनारदादी ॥ ८ ॥
जयति काल-गुण-कर्म-माया-मथन, निश्चलज्ञान,व्रत-सत्यरत,धर्मचारी।
सिद्ध-सुरवृन्द-योगीन्द्र-सेवति सदा,दास तुलसी प्रणत भय-तमारी ॥ ९ ॥
२७
जयति मङ्गलागार, संसारभारापहर,वानराकारविग्रह पुरारी।
राम-रोषानल-ज्वालमाला-मिष ध्वान्तर-सलभ-संहारकारी ॥ १ ॥
जयति मरुदञ्जनामोद-मन्दिर,नतग्रीव सुग्रीव-दुखःखैकबन्धो।
यातुधानोद्धत-क्रुद्ध-कालाग्निहर,सिद्ध-सुर-सज्जनानन्द-सिन्धो ॥ २ ॥
जयति रुद्राग्रणी,विश्व-वन्द्याग्रणी, विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती।
सामगाताग्रणी,कामजेताग्रणी,रामहित,रामभक्तानुवर्ती ॥ ३ ॥
जयतिसङ्ग्रामजय, रामसन्देसहर,कौशला-कुशल-कल्याणभाषी।
राम-विरहार्क-सन्तप्त-भरतादि-नरनारि-शीतलकरण कल्पशाषी ॥ ४ ॥
जयति सिंहासनासीन सीतारमण,निरखि निर्भरहरण नृत्यकारी।
राम सम्भ्राज शोभा-सहित सर्वदा तुलसिमानस-रामपुर-विहारी ॥ ५ ॥
२८
जयति वात-सञ्जात,विख्यात विक्रम,बृहद्बाहु,बलबिपुल,बालधिबिसाला।
जातरूपाचलाकारविग्रह,लसल्लोम विद्युल्लता ज्वालमाला ॥ १ ॥
जयति बालार्क वर-वदन,पिङ्गल-नयन,कपिश-कर्कश-जटाजूटधारी।
विकट भृकुटी,वज् दशन नख,वैरि-मदमत्त-कुञ्जर-पुञ्ज-कुञ्जरारी ॥ २ ॥
जयति भीमार्जुन-व्यालसूदन-गर्वहर, धनञ्जय-रथ-त्राण-केतू।
भीष्म-द्रोण-कर्णादि-पालित,कालदृक सुयोधन-चमू-निधन-हेतू ॥ ३ ॥
जयति गतराजदातार,हन्तार संसार-सङ्कट,दनुज-दर्पहारी।
ईति-अति-भीति-ग्रह-प्रेत-चौरानल-व्याधिबाधा-शमन घोर मारी ॥ ४ ॥
जयति निगमागम व्याकरण करणलिपि,काव्यकौतुक-कला-कोटि-सिन्धो।
सामगायक, भक्त-कामदायक,वामदेव,श्रीराम-प्रिय-प्रेम बन्धो ॥ ५ ॥
जयति घर्माशु-सन्दग्ध-सम्पाति-नवपक्ष-लोचन-दिव्य-देहदाता।
कालकलि-पापसन्ताप-सङ्कुल सदा,प्रणत तुलसीदास तात-माता ॥ ६ ॥
२९
जयति निर्भरानन्द-सन्दोह कपिकेसरी,केसरी-सुवन भुवनैकभर्ता।
दिव्यभूम्यञ्जना-मञ्जुलाकर-मणे,भक्त-सन्ताप-चिन्तापहर्ता ॥ १ ॥
जयति धमार्थ-कामापवर्गद,विभो ब्रह्मलोकादि-वैभव-विरागी।
वचन-मानस-कर्म सत्य-धर्मव्रती,जानकीनाथ-चरणानुरागी ॥ २ ॥
जयति बिहगेश-बलबुद्धि-बेगाति-मद-मथन,मनमथ-मथन,ऊर्ध्वरेता।
महानाटक-निपुन,कोटि-कविकुल-तिलक,गानगुण-गर्व-गन्धर्व-जेता ॥ ३ ॥
जयति मन्दोदरी-केश-कर्षण,विद्यमान दशकण्ठ भट-मुकुट मानी।
भूमिजा-दुःख-सञ्जात रोषान्तकृत-जातनाजन्तु कृत जातुधानी ॥ ४ ॥
जयति रामायण-श्रवण-सञ्जात-रोमाञ्च,लोचन सजल, शिथिल वाणी।
रामपदपद्म-मकरन्द-मधुकर पाहि,दास तुलसी शरण,शूलपाणी ॥ ५ ॥
राग सारङ्ग
३०
जाके गति है हनुमानकी।
ताकी पैज पूजि आई, यह रेखा कुलिस पषानकी ॥ १ ॥
अघटित-घटन, सुघट-बिघटन,ऐसी बिरुदावलि नहिं आनकी।
सुमिरत सङ्कट-सोच-बिमोचन, मूरति मोद-निधानकी ॥ २ ॥
तापर सानुकूल गिरिजा, हर, लषन, राम अरु जानकी।
तुलसी कपिकी कृपा-बिलोकनि, खानि सकल कल्यानकी ॥ ३ ॥
राग गौरी
३१
ताकिहै तमकि ताकी ओर को।
जाको है सब भाँति भरोसो कपि केसरी-किसोरको ॥ १ ॥
जन-रञ्जन अरिगिन-गञ्जन मुख-भञ्जन खल बरजोरको।
बेद-पुरान-प्रगट पुरुषारथ सकल-सुभट-सिरमोर को ॥ २ ॥
उथपे-थपन,थपे उथपन पन,बिबुधबृन्द बँदिछोर को।
जलधि लाँघि दहि लङ्क प्रबल बल दलन निसाचर घोर को ॥ ३ ॥
जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोरको।
जाकी चिबुक-चोट चूरन किय रद-मद कुलिस कठोरको ॥ ४ ॥
लोकपाल अनुकूल बिलोकिवो चहत बिलोचन-कोरको।
सदा अभय,जय, मुद-मङ्गलमय जो सेवक रनरोरको ॥ ५ ॥
भगत-कामतरु नाम राम परिपूरन चन्द चकोरको।
तुलसी फल चारो करतल जस गावत गईबहोर को ॥ ६ ॥
राग बिलावल
३२
ऐसी तोही न बूझिये हनुमान हठीले।
साहेब कहूँ न रामसे , तोसे न उसीले ॥ १ ॥
तेरे देखत सिंहके सिसु मेण्ढक लीले।
जानत हौं कलि तेरेऊ मन गुनगन कीले ॥ २ ॥
हाँक सुनत दसकन्धके भये बन्धन ढीले।
सो बल गयो किधौं भये अब गरबगहीले ॥ ३ ॥
सेवकको परदा फटे तू समरथ सीले।
अधिक आपुते आपुनो सुनि मान सही ले ॥ ४ ॥
साँसति तुलसीदासकी सुनि सुजस तुही ले।
तिहुँकाल तिनको भलौं जे राम-रँगीले ॥ ५ ॥
३३
समरथ सुअन समीरके,रघुबीर-पियारे।
मोपर कीबी तोहि जो करि लेहि भिया रे ॥ १ ॥
तेरी महिमा ते चलै चिञ्चिनी-चिया रे।
अँधियारो मेरी बार क्यो,त्रिभुवन-उजियारे ॥ २ ॥
केहि करनी जन जानिकै सनमान किया रे।
केहि अघ औगुन आपने कर डारि दिया रे ॥ ३ ॥
खाई खोञ्ची माँगि मैं तेरो नाम लिया रे।
तेरे बल,बलि,आजु लौं जग जागि जिया रे ॥ ४ ॥
जो तोसों होतौ फिरौं मेरो हेतु हिया रे।
तौ कयों बदन देखावतो कहि बचन इयारे ॥ ५ ॥
तोसो ग्यान-निधान को सरबग्य बिया रे।
हौं समुझत साई-द्रोहकी गति छार छिया रे ॥ ६ ॥
तेरे स्वामी राम से,स्वामिनी सिया रे।
तहँ तुलसीके कौनको काको तकिया रे ॥ ७ ॥
३४
अति आरत, अति स्वारथी, अति दीन-दुखारी।
इनको बिलगु न मानिये, बोलहिं न बिचारी ॥ १ ॥
लोक-रीति देखी सुनी, व्याकुल नर-नारी।
अति बरषे अनबरषेहूँ, देहिं दैवहिं गारी ॥ २ ॥
नाकहि आये नाथसों, साँसति भय भारी।
कहि आयो, कीबी छमा, निज ओर निहारी ॥ ३ ॥
समै साँकरे सुमिरिये, समरथ हितकारी।
सो सब बिधि ऊबर करै, अपराध बिसारी ॥ ४ ॥
बिगरी सेवककी सदा,साहेबहिं सुधारी।
तुलसीपर तेरी कृपा, निरुपाधि निरारी ॥ ५ ॥
३५
कटु कहिये गाढे परे, सुनि समुझि सुसाईं।
करहिं अनभलेउ को भलो, आपनी भलाई ॥ १ ॥
समरथ सुभ जो पाइये, बीर पीर पराई।
ताहि तकैं सब ज्यों नदी बारिधि न बुलाई ॥ २ ॥
अपने अपनेको भलो, चहैं लोग लुगाई।
भावै जो जेहि तेहि भजै, सुभ असुभ सगाई ॥ ३ ॥
बाँह बोलि दै थापिये, जो निज बरिआई।
बिन सेवा सों पालिये, सेवककी नाईं ॥ ४ ॥
चूक-चपलता मेरियै, तू बड़ो बड़ाई।
होत आदरे ढीठ है, अति नीच निचाई ॥ ५ ॥
बन्दिछोर बिरुदावली, निगमागम गाई।
नीको तुलसीदासको, तेरियै निकाई ॥ ६ ॥
राम गौरी
३६
मङ्गल-मूरति मारुत-नन्दन। सकल-अमङ्गल-मूल-निकन्दन ॥ १ ॥
पवनतनय सन्तन हितकारी। ह्रदय बिराजत अवध-बिहारी ॥ २ ॥
मातु-पिता,गुरु,गनपति,सारद। सिवा समेत सम्भु,सुक,नारद ॥ ३ ॥
चरन बन्दि बिनवौं सब काहू। देहु रामपद-नेह-निबाहू ॥ ४ ॥
बन्दौं राम-लखन-बैदेही। जे तुलसीके परम सनेही ॥ ५ ॥